मानहानि कानून क्या है | मानहानि के खिलाफ अधिकार

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है एवं समाज में पहचान हासिल करना हर मनुष्य का एक निरंतर प्रयत्न होता है। मान, मर्यादा, इज्ज़त एवं प्रतिष्ठा मानविक जीवन के अभिन्न अंग हैं। ये मनुष्य के पहचान के उन पहलुओं में से हैं जो उसकी सामाजिक प्रकृति के मौलिक गुण हैं। मानहानि व्यक्ति के इन पहलुओं को क्षीण करने की कोशिश करता है। इसलिए हमारे संविधान ने प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रतिष्ठा एवं सम्मान को  बचाने के लिए अधिकार प्रदान किये हैं, जिसका उपयोग वह मानहानि के विरुद्ध कर सकता है |
इस तर्क की तह तक जाने से पहले मानहानि कानून के बारे में जानना ज़रूरी है । मानहानि का कानून समाज और व्यक्ति के बीच एक संघर्ष  है, जहाँ एक तरफ, संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत मुक्त भाषण का मौलिक अधिकार है, वहीं दूसरी ओर व्यक्ति की प्रतिष्ठा का अधिकार है | इन दिनों आपराधिक मानहानि का दुरुपयोग एक उपकरण के रूप में भाषण तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए किया जा रहा है |
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मानहानि विधि का वर्तमान परिदृश्य
भारत में मानहानि दोनों, दीवानी (civil) और फौजदारी (criminal) अपराध है। दीवानी कानून के तहत, अपमानित व्यक्ति अपने अपमान को साबित करने के लिए उच्च न्यायालय या निचली अदालत में जा सकता है और आरोपी से आर्थिक मुआवजे की मांग कर सकता है।
पिछले कुछ समय में आपराधिक मानहानि खबरों में है  क्योंकि इस संकल्पना के बारे में कई प्रश्न उठाए गए हैं कि जिसमे सर्वप्रथम प्रश्न यह है कि क्या इसे आपराधिक (criminalised) बनाया जाना चाहिए या फिर दीवानी अपराध (civil offence) बनाया जाना चाहिए। इस बहस के जवाब में यह तर्क दिया जाता है कि आपराधिक मानहानि का भारतीय संविंधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदान किए गए भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा, इसलिए इसे दीवानी अपराध बनाने के लिए मांगें उठाई गई हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले “सुब्रह्मण्यम स्वामी बनाम केंद्र सरकार” में डिवीजन खंडपीठ में मुख्य न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति पी. सी. पंत ने कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार में ख्याति का अधिकार (Right to reputation) शामिल है। बेंच ने सुब्रमण्यम स्वामी, राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया है जो भारत में आपराधिक मानहानि से संबंधित कानून को चुनौती दे रहे थे और इसके साथ साथआपराधिक मानहानि को भारतीय दंड संहिता की धारा 499 से 502 के अंतर्गत संवेधानिक तौर से वैध घोषित किया है |[1]

मानहानि

आपराधिक मानहानि क्या है?

भारतीय दंड संहिता की धाराएं 499 से 502 मानहानि से सम्बंधित है |अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को अपमानित करता है तो अपमानित व्यक्ति उसके खिलाफ न्यायालय जा सकता है | भारतीय दण्ड संहिता की धारा 500 के अंतर्गत मानहानि कारित करने वाले को दो साल की सजा का प्रावधान है | इसका यह तात्पर्य नहीं है कि मानहानि मात्र व्यक्ति विशेष के खिलाफ हो सकती है। मानहानि व्यक्ति के साथ साथ राष्ट्र एवं समुदाय के खिलाफ भी किया जा सकता है।
राज्य के खिलाफ मानहानि भारतीय दंड संहिता की धारा 124 A में निहित है जिसको देशद्रोह (Sedition) कहा जाता है | किसी समुदाय के खिलाफ मानहानि भारतीय दंड संहिता की धारा 153 में निहित है, जिसे  उपद्रव (Riot) कहा जाता है |

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भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के तहत के अनुसार मानहानि-
“जो कोई बोले गए या पढ़े जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या चित्रों  द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाए, या यह जानते हुए या विशवास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से उस व्यक्ति की अपहानि होगी, सिवाय अपवादों के, तो वह व्यक्ति मानहानि करता है|”
स्पष्टीकरण 1 के अनुसार मृत व्यक्ति पर लांछन लगाना भी मानहानि की कोटि में आ सकता है यदि वह लांछन उस व्यक्ति की ख्याति, यदि वह जीवित होता, को अपहानि करता, और उसके परिवार या अन्य निकट सम्बन्धियों की भावनाओं को उपहत करने की लिए आशयित हो |
स्पष्टीकरण 2. -किसी कंपनी या किसी संगठन या व्यक्तियों के संग्रह से संबंधित अपमान करना मानहानि हो सकता है।
स्पष्टीकरण 3.- अनुकल्प के रूप में या व्योंगोक्ति के रूप में अभिव्यक्त लांछन मानहानि की कोटि में आ सकता है |
स्पष्टीकरण 4  कोई लांछन किसी व्यक्ति की ख्याति की अपहानि करने वाला नहीं कहा जाता जब तक कि वह लांछन  दूसरों की दृष्टि में प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: उस व्यक्ति के सदाचारिक या बौद्धिक चरित्र को हानि न करे या उस व्यक्ति की जाति या उसकी आजीविका के सम्बन्ध में उस व्यक्ति अपहानि न करता हो | या उस व्यक्ति की साख को नीचे न गिराए या यह विशवास न कराए कि उस  व्यक्ति का शरीर घृणोत्पादक दशा में है या ऐसी दशा में है जो साधारण रूप से नीकृष्ठ समझी जाती है |

मानहानि का अपवाद

अपवाद 1 : सत्य बात का लांछन लगाया जाना या प्रकाशित किया जाना जो लोक कल्याण के लिए उपेक्षित है, मानहानि नहीं है |
अपवाद 2 : उसके लोक कृत्यों के निर्वहन में, लोक सेवक के आचरण के विषय में या उसके शील के विषय में, जहाँ तक उसका शील उस आचरण से  प्रकट होता न कि उससे आगे, कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सद्भावपूर्वक अभिव्यक्त करता है मानहानि नहीं है |
अपवाद 3 : किसी लोक कल्याण प्रश्न के सम्बन्ध में किसी व्यक्ति के आचरण के बारे में, और उस के शील के बारे में,  जहां तक उसका आचरण प्रकट होता है न कि उससे आगे कोई राय चाहे वह कुछ भी हो, सदभावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है|
अपवाद 4 : किसी न्यायालय की कार्यवाहियों या ऐसी किन्हीं कार्यवाहियों के सही रिपोर्ट को प्रकाशित करना मानहानि नहीं है |
अपवाद 5 : न्यायालय में मामले की गुणवत्ता या साक्ष्यों तथा अन्य व्यक्तियों का आचरण को सदभावपूर्वक अभिव्यक्त या प्रकाशित करता है तो मानहानि नहीं है, बशर्ते कि अदालत ने मामला तय कर लिया हो |
अपवाद 6 : किसी ऐसे कृति जो लोक के गुणागुण के बारे में जिसको उसके कर्ता ने लोक निर्णय के लिए रखा सदभावपूर्वक अभिव्यक्त या प्रकाशित करता है मानहानि नहीं है|
अपवाद 7: किसी अन्य व्यक्ति के ऊपर विधिपूर्वक प्राधिकार( lawful authority) रखने वाले व्यक्ति द्वारा सदभावपूर्वक (good faith)  की गयी परिनिन्दा (censure) मानहानि नहीं है|
अपवाद 8: प्राधिकृत (authorised) व्यक्ति के समक्ष सदभावपूर्वक (good faith) अभियोग (accusation) लगाना मानहानि नहीं है |
अपवाद 9: अपने या अन्य व्यक्ति के हितों की संरक्षा के लिए  किसी व्यक्ति द्वारा सदभावपूर्वक लगाया लांछन (imputation) मानहानि नहीं है |
अपवाद 10 : सावधानी जो व्यक्ति की भलाई के लिए, जिसे की वह  दी गई है या लोक कल्याण के लिए आशयित हो मानहानि नहीं है |
अगर किसी व्यक्ति द्वारा दिया गया बयान इन स्थितियों में से किसी एक स्थिति में आता है तो वह आदमी मानहानि नहीं करता है तथा वह इस स्थिति में सुरक्षित है |

मानहानि करने के लिए निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक होता है –

  1.      अपमानजनक टिप्पणी या बयान का होना चाहिए ।
  2.      अपमानित करने का आशय (intention) होना चाहिए ।
  3.      अपमानजनक टिप्पणी या बयान अभियोगी को लक्ष्य करके बोलना चाहिए ।
  4.      बयान या टिप्पणी का प्रकाशित होना  पूर्ववर्ती शर्त है, यह अभियोगी के भी किसी और व्यक्ति को भी सूचित होना आवश्यक होता है।
  5.      बयान सामान्य प्रकृति का नहीं होना चाहिए ।

प्रकाशन (Publication)

प्रकाशन मानहानि करने के सबसे आवश्यक तत्वों में से एक है, क्योंकि प्रकाशन के कारण ही लोगों को अपमानजनक टिपण्णी, लिखित या अन्य प्रदर्शित चित्रण के बारे में जानने को मिलता है जिसके  फलस्वरूप वह व्यक्ति अपमानित होता है |

आशय (Intention)

भारतीय दंड संहिता की धारा 499  यह स्पष्ट करती है कि आपराधिक मानहानि कारित करने के लिए दूसरे व्यक्ति  को अपमानित करने का आशय (intention) होना चाहिए |
आशय में यह भी शामिल है कि व्यक्ति यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लांछन लगाता या ऐसा प्रकाशन करता है कि ऐसे लांछन से उस व्यक्ति के मान की अपहानि होगी |

मानहानि के प्रकार

मानहानि दो प्रकार से हो सकती है|  एक, जब कोई आदमी सार्वजनिक जगह पर ऐसे शब्द बोलता जिसकी वजह से दूसरे व्यक्ति की के मान की अपहानि होती है अथवा उस के मान को ठेस पहुँचती है, तो यह मौखिक मानहानि (slander) की श्रेणी में आता हैं|
दूसरा, जब कोईव्यक्ति किसी अन्य  व्यक्ति की अपहानि लिखकर या चित्रण द्वारा करता है या कुछ प्रकाशित करके किसी व्यक्ति या किसी संस्था विशेष की छवि ख़राब करता है या ठेस पहुंचाता है तो वह लिखित मानहानि की श्रेणी  में आता है और इस प्रकार की मानहानि  को लिखित मानहानि (libel) कहा जाता है|
 
 मानहानि कानून का महत्व

व्यक्ति की प्रतिष्ठा समाज में उसके लिए एक  बहुमूल्य संपत्ति है, जो अक्सर उसे भौतिक संपदा प्राप्त करने में सक्षम बनाती है।
संविधान की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसमें निहित मौलिक अधिकार हैं | संविधान के मौलिक अधिकारों में से एक जीवन जीने का अधिकार (Right to Life) भी शामिल है | यह सबसे महत्वपूर्ण, मानव, मौलिक, अचूक, आनुवांशिक अधिकार है। स्वाभाविक रूप से और तर्कसंगत रूप से इस अधिकार को उच्चतम सुरक्षा की आवश्यकता होती है |
सर्वोत्तम न्यायालय की व्याख्या के अनुसार जीवन के अधिकार के तहत कई और अधिकार इसमें शामिल है | इसका एक विस्तारित अर्थ है, जिसमें जीने के अधिकार के अंतर्गत मानव गरिमा (right to human dignity), आजीविका का अधिकार (right to livelihood), स्वास्थ्य का अधिकार (right to health), प्रदूषण मुक्त हवा का अधिकार (right to pollution free air), आश्रय का अधिकार (right to shelter), गोपनीयता का अधिकार (right to privacy), इत्यादि शामिल है।[2]
संविधान के निर्माताओं को मानव गरिमा (Human Dignity) और पात्रता (worthiness) के महत्व के बारे में पता था, इसलिए उन्होंने भारतीय संविधान की प्रस्तावना में मानव गरिमा को शामिल किया।
यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि हर एक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह दूसरों की गरिमा का सम्मान करे और उसे अपमानित करने की चेष्टा न करे |
हमारे उच्चतम न्यायालय ने भी ये बात 2016  के एक मामले में स्पष्ट करी थी कि प्रतिष्ठा का अधिकार (Right to Reputation ) व्यक्तिगत सुरक्षा का एक तत्व है और समान रूप से स्वतंत्रता (liberty) संपत्ति (property), जीवन के आनंद के अधिकार (Right to the Enjoyment of Life) के साथ संविधान द्वारा संरक्षित किया गया है |[3]
अधिकांश न्यायप्रणालियों में मानहानि के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही के प्रावधान हैं, ताकि लोग विभिन्न प्रकार की मानहानियाँ तथा आधारहीन आलोचना ना करें |
 
व्यक्ति की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए तथा उसकी प्रतिष्ठा की सुरक्षा करने के मानहानि के कानूनों का महत्त्व दिनों दिन बढ़ रहा है हालाँकि इन कानूनों दुरूपयोग भी बढ़ रहा है क्योकि मानहानि के कानूनों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए राजनितिक नेताओ तथा बड़े कॉर्पोरेट हाउसेस द्वारा एक उपकरण के रूप में उपयोग किया जाने लगा है |
पिछले कुछ वर्षों में भारत में मानहानि के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। राजनीतिक नेता एक दूसरे के खिलाफ निराधार कारणों पर मानहानि के मामले दर्ज कर रहे हैं,  जिसके उपरांत सामने वाली पार्टी मानहानि का मामला दर्ज करवाती है। कई जानबूझकर नकली बयान, या तो लिखित या मौखिक, जो किसी व्यक्ति का सम्मान, या आत्मविश्वास कम करता है; या किसी व्यक्ति के खिलाफ अस्वीकार, शत्रुतापूर्ण, या असहनीय राय या भावनाओं को प्रेरित करता है |
स्वतंत्र अभिव्यक्ति में सामाजिक हित इस विचार पर आधारित है कि अभिव्यक्ति के बिना कोई समाज नहीं है, क्योंकि संचार (communication) सामाजिक जीवन का सार है |प्रतिष्ठा के अधिकार और भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के बीच संतुलन होना जरुरी है 

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